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आओ चलें अवध के गाँव / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
आओ तुमका लै चली, साथै अपने गाँव!
रस्ता मा गईया मिली, लीन्हें टूट गेराँव!!
जब तक पानी ना गिरा, ...सूखे रहे परान!
झम झम बारिश मा सुनौ, अब कजरी कै तान!!
तीसरि बिटिया के भये, काका हैं हैरान!
तीन साल ते सुनि रहे, उई हरिबंश पुरान!!
तुलसा मैय्या सूखि कै, आँगन गयीं बिलाय!
चौतरिया पर लालु के, कपड़ा रहे सुखाय!!
पानी अब नरदहा का, गलियारे मा जाय!
धुन्नी तो देवाल का, बढ़िकै लिहिन बनाय!!