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आओ चलें क्षितिज के पार / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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आओ चलें क्षितिज के पार।
जहाँ अनोखा इंद्र धनुष सा
है अभिनव संसार॥

हिम् से ढकी चोटियाँ फूल भरी हो घाटी
दूर दूर तक पेड़ों की सुंदर परिपाटी।

जहाँ जटा से शिव शंकर के
बहती गंगा धार।
आओ चलें क्षितिज के पार॥

जले दीप नन्हा सा मन की आशाओं का
खिले फूल फिर कुछ नूतन अभिलाषाओं का

नयन करें सपनों से आओ
फिर थोड़ा मनुहार।
आओ चलें क्षितिज के पार॥

बाहर की गुनगुनी धूप फिर आंगन आये
टूटे मौन शीत सा सुख कलिका मुस्काये

उठा हथौड़ा पीर - शिला पर
आओ करें प्रहार।
आओ चलें क्षितिज के पार॥

बड़ा भवन पर प्राण फिरा करते अनबोले
कौन अधर की बन्द खिड़कियों को खोले

चलो हटा दें रौशनदानों पर
जो पड़े उहार।
आओ चलें क्षितिज के पार॥