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आओ जिन आइबे को गहो जिन गहिबे को / तोष
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आओ जिन आइबे को गहो जिन गहिबे को ,
गहे रहिबे को छोड़ि छोड़िकै सुनावती ।
खीझिहू को रीझि झिझिकारिबो मया है अरु ,
रोसै रस ज्योँ ज्योँ भृकुटीन को चढ़ावती ।
कहै कवि तोष हाँ को नाहिँये कहत नारि ,
रावरी सोँ तुमसो न भेद मैँ दुरावती ।
सुख जो चहौगे तो न भरम गहौगे लाल ,
निपट निबोढ़न की पारसी बतावती ।
तोष का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।