आओ थोड़ा प्यार कर लें / चंदन द्विवेदी
कल कोई अफसोस लिखने से है बेहतर
आज सारी भय की सीमा पार कर लें
कल न जाने हम कहाँ हों तुम कहाँ हों
आज मिलकर आओ थोड़ा प्यार कर लें
नाश हो जाता है वह धन जिसका कि उपभोग न हो
है बता ऐसा कहीं कि जिसको कोई रोग न हो
स्वर्ग-सा सुन्दर हो उपवन पर कोई उपयोग न हो
हो भले कंचन बदन पर समय का सुयोग न हो
भावनाएँ कह रही हैं शब्द से यह
आओ थोड़ा अर्थ का शृंगार कर लें
चार दिन की यह जवानी फिर न इतने लाल होंगे
न तो ऐसा रूप होगा न गुलाबी गाल होंगे
रूप, रस, स्पर्श से हम फिर न मालामाल होंगे
साल है अभी दिवस जैसा दिवस जैसे साल होंगे
कल न आँखों में दिखेंगे झील झूले
आओ चलकर आज नैना चार कर लें
वक्त का अर्जुन बनो यह वक्त भी कहता रहा है
वक्त ही ठहरा रहा है वक्त ही बहता रहा है
वक्त की इस मायूसी में वक्त भी रहता रहा है
वक्त को उल्लास दो कि वक्त सब सहता रहा है
इस घड़ी की हथकड़ी को तोड़ कर हम
आओ मिलकर रक्त का संचार कर लें
कल का सूरज तुमको उगने की इजाजत फिर न देगा
घर की तुलसी कह के दुनिया देहली पर रोक देगी
गर जो पर को खोलकर आकाश को परवाज दोगे
मांग की सिंदूर रेखा भी तुम्हें तब टोक देगी
तोड़ बाधाएँ उमंगों को उछालें
आओ थोड़ा सांसों का व्यापार कर लें
कल कोई अफसोस लिखने से है बेहतर
आज सारी भय की सीमा पार कर लें