आओ देख लो / शेखर सिंह मंगलम
आओ! तुम्हें सचिवालय का ‘पास’ देता हूँ 
बिना कतार में लगे तुम 
सरकारी कामकाज निराधार देख लो
मंत्रियों के केबिन में 
घंटों गप्पे लड़ाते अमीर 
केबिन के बाहर दिनों-दिनों तक 
किसी तरह कतार में लग 
मिले हुए ”पास“ के साथ बैठे लाचार देख लो
केबिन के पीछे भी पर्दे लगे बंद केबिन हैं 
लूट के मसौदों का भरमार देख लो
मंत्री जी के कारिंदे 
दाना चुग रहे फाइलों में 
दल्ले भी बैठे हैं बेशुमार देख लो
कई तल हैं सचिवालय में 
आओ तुम भी सीखो 
कुछ बेईमानी के विद्यालय में 
कैसे करते हैं जनहित के खोपचे में 
स्वहित का कारोबार देख लो
अभी मैं पाँचवें तल पर नहीं ले जा सकता 
जनवादी सरकार है जिसका 
टेलीविजन पर चर्चा अपार है मगर 
भ्रम टूट जाएगा अगर 
सिर्फ़ तल तुम चार देख लो
पाँचवे तल पर जाना असंभव नहीं मगर 
बहुत कठिन है 
वहाँ कोई नाग तो कोई नागिन है मगर 
कैसे चलता है 
वहाँ पूंजीपतियों का व्यापार देख लो
तुम भी मेरी तरह 
अनवरत कोशिश करो 
समाजवादी, राष्ट्रवादी व अन्य सरकारों के 
जनता से क्या रहे हैं 
पाँचवें तल पर भी सरोकार देख लो
हम तुम करते हैं 
जाति-पाति और मज़हब की बातें 
सवर्णों के साथ हमारे तुम्हारे 
अधिकारों का चोरी करते सचिवालय में 
अन्य सहित चमार-धरकार देख लो
ग़रीब जन के लिए बंद रहता 
सोमवार से शनिवार तक सचिवालय 
अमीरों के लिए खुला रहता 
चाहो तो कोई भी इतवार देख लो
केबिन के अंदर बैठे रहते हैं सक्षम 
केबिन के बाहर बैठे सदियों से 
असक्षम बेगार देख लो 
मंत्री जी पिछले दरवाज़े से निकल गए 
हाथों में लिए ”पास“ उम्मीदों के
बैठे हैं बीमार देख लो 
आओ ! तुम अपनी सरकार देख लो
तुम चुनाव में किए गए मीनारी वादों का 
साथ मेरे उतार देख लो 
मजबूत लोकतंत्र के पहरूवों का 
संग अपने व्यवहार देख लो
मुझे पता है कि तुमने 
सियासत देखी नहीं कभी नज़दीक से 
सचिवालय में इसका सार देख लो 
आओ ! तुम्हें सचिवालय का ”पास“ देता हूँ 
बिना कतार में लगे तुम 
सरकारी कामकाज निराधार देख लो...
 
	
	

