भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आओ पुल पर चलें / हरिपाल त्यागी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ, पुल पर चलें
वहीं से देख पाएंगे
टुनटुनिया पहाड़,
पत्थरों की संगीत-सभा,
पीछे मुड़ देखेंगे पूरा शहर एक साथ,
सामने बांदा का किला,
पुल पार ऊंचे एक टीले पर जुटे
मटमैले बच्चों से घर-
परस्पर सहारे पर टिके हुए,
धरे एक-दूसरे के कंधे पर खपरैली सिर
घाटी में झांकता हुआ गांव,
निर्वसन, श्यामा नदी केन
चुपचाप लेटी है बेखबर
आओ, पुल पर चलें।