भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आओ प्रेमामृत पान करें / गिरधारी सिंह गहलोत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ प्रेमामृत पान करें
   
नयनों से बातें हुई बहुत
बीते न कहीं ये मादक रुत
कर रहा मदन अब आवाहन
आ ऋतु बसंत का मान करें
आओ प्रेमामृत पान करें
   
जो प्रीत पगी अभिलाषाएं
कहीं व्यर्थ सभी न हो जाएँ
सिर आशंकाओं का कुचलें
चिर लक्ष्य आज संधान करें
आओ प्रेमामृत पान करें
   
उपलब्ध समय जो यौवन का
उपहार मनोहर जीवन का
जीकर अब हर इक मधुरिम पल
आरम्भ नया आख्यान करें
आओ प्रेमामृत पान करें