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आओ सब मिल-जुल कर रोयें / विमल राजस्थानी

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आओ सब मिल-जुल कर रोयें
आँसू का सैलाब बहाकर, आजादी की लाश डुबोयें
आओ सब मिल-जुल कर रोयें
व्यर्थ जा रहे मन्दिर-मस्जिद
जप-तप सारे व्यर्थ कर रहे
ईश्वर झूठी एक कल्पना
व्यर्थ चरण पर शीष धर रहे
टूटी कमर, दुख गये कंधे, बोझ व्यर्थ का ढोये-ढोये
आओ सब मिल-जुल कर रोयें
लाख करो प्रार्थना, बजाओ-
शंख, नहीं पाषाण पसीजे
तड़प-तड़प कर मरो अभागो !
ईश्वर हो, तब तो वह रीझे
जो भजते पुरूषार्थ स्वंय का, वे क्यों मुँह ईश्वर का जोहें
आओ सब मिल-जुल कर रोयें
गाँधी जो आजादी लाया
स्वयं हुआ था हक्का-बक्का
घिघिया-घिघिया कर बोला था
‘‘हाय हुआ मैं खोटा सिक्का’’
आजादी की गुड्डी झपटी रूग्ण देश ने सोये-सोये
आओ सब मिल-जुल कर रोयें
व्यर्थ दोष देते शासन का
शासक के निर्माता हम हैं
कोई नहीं हमारा स्वामी
अपने भाग्य-विधाता हम हैं
चाभेगा वह आम भला कब, खुद बबूल जिसने है बोये
आओ सब मिल-जुल कर रोयें