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आओ हम धूप-वृक्ष काटें / माहेश्वर तिवारी
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आओ हम धूप-वॄक्ष काटें ।
इधर-उधर हलकापन बाँटें ।
अमलतास गहराकर फूले
हवा नीमगाछों पर झूले,
चुप हैं गाँव, नगर, आदमी
हमको, तुमको, सबको भूले
हर तरफ़ घिरी-घिरी उदासी
आओ हम मिल-जुल कर छाँटें ।
परछाईं आ कर के सट गई
एक और गोपनता छँट गई,
हल्दी के रँग-भरे कटोरे-
किरन फिर इधर-उधर उलट गई
यह पीलेपन की गहराई
लाल-लाल हाथों से पाटें ।
आओ हम धूप-वृक्ष काटें ।