आकर्षक अभिराम बन गया,
जिस पल दर्प प्रणाम बन गया।
संशय के इस दण्डक-वन में,
हर पल इक संग्राम बन गया।
स्वस्तिक रच कृतकृत्य कलाविद्,
विश्रम हो विश्राम बन गया।
निश्छल अन्तस में अनुगुंजित,
अनहद अक्षरधाम बन गया।
चिन्तन अनुचिन्तन संकीर्तन,
क्रन्दन भगवन्नाम बन गया।