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आकर हाथ मिलाया फिर वो / राजपाल सिंह गुलिया
Kavita Kosh से
आकर हाथ मिलाया फिर वह,
हाथ हिला कर चले गए।
बड़े वृक्ष की छाया चोखी,
इसी आस में छले गए।
पेट काट कर मंच सजाया।
फिर उनके आगे रोए,
मार आदमी जिस मानस ने,
हाथ न अब तक थे धोए।
आज उसी के आश्वासन की,
मंद आँच पर तले गए।
दिया हाथ का आज तलक तो,
आया ना अपने आड़े।
लुटे पिटे हम रहे देखते,
खुद को ही आँखें फाड़े
फूल कली थे गुँथे हार जो,
पहले वह ही मले गए।
तिक्त नीम को गुड़ शक्कर से,
बोलो हम कब तक सींचें,
धूल झोंकते नित आँखों में,
कब तक निज आँखें मींचें।
बुरे हुए हम जग की नजरों
साथ आपके भले गए।