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आकर हिला पायल कि मैं झनकार बन जाऊँ / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

आकर हिला पायल कि मैं झनकार बन जाऊँ।
सुन लूं मधूरतम ताल कि फनकार बन जाऊँ।।

दिल में लगी है आग तुम आकर हवा दे दो।
धधका दो इस कदर कि मैं अंगार बन जाऊँ।।

खुद सोचता हूँ प्यार करूँ या करूँ नफरत।
चुपके से आ मिलो कि मैं शृंगार बन जाऊँ।।

क्यों झांकती हो तिरछी नज़र से भला मुझको।
कह दो मुहब्बत है कि मैं अख़बार बन जाऊँ।।

वादा खिलाफी हो तो तरजीह मत देना।
ऐसा न हो कि दिल्ली की सरकार बन जाऊँ।।