आकस्मिक / महेन्द्र भटनागर
प्रत्येक गति
नियति
कार्य-कारण-बद्ध है,
सृष्टि का प्रत्येक कम्पन
धीमा
अथवा विराट
प्राकृतिक नियमों से सिद्ध है।
पर,
संवेदनशील प्राणियों की
पारस्परिक
संगति
निकटता
आत्मीयता
मात्र एक संयोग है !
तभी तो --
इतनी बड़ी दुनिया में
अरबों मनुष्यों की दुनिया में
करोड़ों लोग अकेले हैं,
किसी का साथ पाने के लिए
किसी को
हमसफ़र बनाने के लिए
आकुल हैं,
व्याकुल हैं !
आवश्यकताएँ हैं :
पर,
पूर्तियाँ नहीं !
अर्चनाएँ हैं :
पर,
मूर्तियाँ नहीं !
भटकनें हैं :
बाट नहीं !
नदियाँ हैं :
घाट नहीं !
सर्वत्र
तलाश-ही-तलाश है !
ज़िन्दगी:
डोलती
बोलती
लाश है !
हाथ आया स्वर्ण
जब
मिट्टी में बदल जाता है,
बड़ी कोशिशों से पाया
अपनाया
जब
पराया निकल जाता है !
तब
लगता है:
जीवन कारण-हीन है !
मनुष्य
सचमुच, दीन है !
प्रतीक्षा करो !
अनाचक की
प्रतीक्षा करो !
जीवित सम्पर्क
बनाये नहीं जाते,
बन जाते हैं !
मनचाहे स्वप्न
बुलाये नहीं जाते,
स्वतः आते हैं !
ओ विश्व भर के
अभिशप्त मानवो !
प्रतीक्षा करो !
अचानक की
प्रतीक्षा करो !