भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आकस्मिक / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्थूल निर्जीव पदार्थों की

प्रत्येक गति

नियति

कार्य-कारण-बद्ध है,

सृष्टि का प्रत्येक कम्पन

धीमा

अथवा विराट

प्राकृतिक नियमों से सिद्ध है।


पर,

संवेदनशील प्राणियों की

पारस्परिक

संगति

निकटता

आत्मीयता

मात्र एक संयोग है !


तभी तो --

इतनी बड़ी दुनिया में

अरबों मनुष्यों की दुनिया में

करोड़ों लोग अकेले हैं,

किसी का साथ पाने के लिए

किसी को

हमसफ़र बनाने के लिए

आकुल हैं,

व्याकुल हैं !


आवश्यकताएँ हैं :

पर,

पूर्तियाँ नहीं !

अर्चनाएँ हैं :

पर,

मूर्तियाँ नहीं !


भटकनें हैं :

बाट नहीं !

नदियाँ हैं :

घाट नहीं !


सर्वत्र

तलाश-ही-तलाश है !

ज़िन्दगी:

डोलती

बोलती

लाश है !


हाथ आया स्वर्ण

जब

मिट्टी में बदल जाता है,

बड़ी कोशिशों से पाया

अपनाया

जब

पराया निकल जाता है !

तब

लगता है:

जीवन कारण-हीन है !

मनुष्य

सचमुच, दीन है !

प्रतीक्षा करो !

अनाचक की

प्रतीक्षा करो !


जीवित सम्पर्क

बनाये नहीं जाते,

बन जाते हैं !

मनचाहे स्वप्न

बुलाये नहीं जाते,

स्वतः आते हैं !


ओ विश्व भर के

अभिशप्त मानवो !

प्रतीक्षा करो !


अचानक की

प्रतीक्षा करो !