भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आकाश छूती इमारतें बनाने वालों / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आकाश छूती इमारतें बनाने वालों।
सदियों से मिले हमें फुटपाथ के हवाले!

यह किस्मत बदनाम हुई, आपकी बदौलत,
हाथों की हद से दूर रहते हैं निवाले।

यहां सभी आते हैं गंदगी में डूबने,
इस धधकते नरक से बाहर कौन निकाले?

ऐसे बढ़ती रही उल्फत अंधेरों से तो,
लाख तलाशें, न मिलेंगे कल यहां उजाले!

जैसे भी हो, बदलो बदतर होती सूरत,
खुदगर्ज जमाना, यह सवाल कौन उछाले?