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आकाश जिसे गले लगाने को / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
आकाश
जिसे गले लगाने को
आतुर हो
उसे मात्र
एक मुट्ठी आसमान की
कामना क्यों हो ?
मकान की हद नहीं
तुम्हारा परिवार तो
पूरी संसृति है
सबका स्नेह
तुम्हारे मन में
हर मन में हो
तुम्हारा स्नेह
विशेष प्रयोजन से
तुम्हें भेजा है
ईश्वर ने
अपनी प्रतिभा
परिश्रम
साधना से
धरती को
तुम हर लो