आकाश नीला है (कविता) / बाल गंगाधर 'बागी'
अंधेरे को दूर भगाना, लाना नया सवेरा है
उठो जवानो लड़ो जंग, अपना आकाश नीला है
सरिता सागर झील सरोवर, नीले चाँद सितारे हैं
सूरज की आँखों में कितने, आसमान यूं प्यारे हैं
काली रैना काले बादल, जड़ से दूर भगाना है
अपने घर के अंधियारों से, सूरज हमें उगाना है
खामोशी में इंकलाब है, छाया यहाँ घनेरा है
उठो जवानो लड़ों जंग, अपना आकाश नीला है
एक तरफ चट्टान यहाँ पर, दूजा1 गहरी खाई है
एक तरफ हरियाली का डेरा, औ’ बीरानी छायी है
आँखें हैं सैलाब2 यहाँ क्यों अपनी जान पराई है
अपना भी सम्मान है क्या, जब उनकी बन बाई है
ध्वस्त करो उस साजिश को, जो त्योहारों का मेला है
उठो जवानो लड़ों जंग, अपना आकाश नीला है
घर अपने नहीं निवाले तो, पकवान हो क्यों उनके घर में
जो हंसते हैं चट्टानों पे, हमें गिरा-गिरा के दलदल में
जल जंगल की हड़पनीति कर, बेघर हमें बनाते हैं
सदियों फिर पीछे करने का, ऐसा जाल बिछाते हैं
रोटी कपड़ांे से जूझ रहा है, जो भी यहाँ कमेरा है
उठो जवानो लड़ों जंग, अपना आकाश नीला है
अधिकार नहीं मिलता ऐसे, अधिकार तो छीने जाते हैं
दर दौर में लालच दे, मुद्दों से हमें भटकाते हैं
बांट हमें टुकड़े में फिर वो, अपना स्वांग रचाते हैं
एक साथ आये न हम, इसीलिये लड़वाते है
जाति धरम का बंधन तो, सदियों से बड़ा झमेला है
उठो जवानो लड़ों जंग, अपना आकाश नीला है