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आकाश में एक क्षुद्र पक्षी / अज्ञेय

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आकाश में एक क्षुद्र पक्षी अपनी अपेक्षा अधिक वेगवान् पक्षी का पीछा करता जा रहा है।
क्षुद्र पक्षी! तू अपने नीड़ से दूर और दूरतर होता जा रहा है, अपने विभव को खो कर उस का पीछा कर रहा है।
किन्तु वह तेजोराशि, वह ज्योतिर्माला, तुझ से आगे, तुझ से अधिक गति से उड़ी जा रही है। अनवरत चेष्टा से उस की ओर बढ़ते रहने पर भी उस में और तुझ में अन्तर बढ़ता जा रहा है...

दिल्ली जेल, 27 जून, 1932