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आकाश में बदल ले ले / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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आकाश में बादल लेले
आसाढ़ फेनू आ गइल।
बरखा के रस भीनल गंध
फेनू हवा में छितरा गइल।
नूतन जल भरल मेघ देख के
हमार पुरातन मन फेनू अगरा गइल
आकाश में बादल ले ले
आसाढ़ फेनू आ गइल।
दूर-दूर तक फइलल खेतन मेभें
नया-नय घस-दूभ तृणदल पर
बादल के छाँह पड़ल
तन-मन अगर गइल।
”आइल रे आइल“ रटे प्राण
”आइल रे आइल“ उठे गान
नैनन में बस गइल
मन में सभा गइल
आ गइल आसाढ़ फेन
बादल नभ छा गइल।