भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आकाश ही आकाश / मौरीस कैरेम / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे चारों तरफ़ आकाश है
ऊपर भी आकाश है
आगे-पीछे आकाश
दाएँ-बाएँ आकाश है
चारों तरफ़ आकाश

मैं हूँ कहाँ ?
चारों ओर चक्कर काट रही है मान्या !

धूप भरा दिन है सुनहरा
बावला है दिन यह रुपहला
झूल रहा चारों ओर आकाश
मन में मेरे झूम रहा आकाश !
 
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय