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आकाश / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
धूप
इक बेहद मटमैली तार-तार झन्ना धोती
मूजर की,
झलमलाता झाँकता बदन
सूर्य,
बौराए पेड़
बिरवे
खम्भे
बच्चे
मूक ।
रौशनी के ये ताल
दुकूल,
धुआँ
लहराय ।
बाट जोहती टहनी
बरौनी
पे
सारी खुली आँख-सा
आ का श ।