भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आके जहिया से गेल / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
आके जहिया से गेल हए मौसम चुनाव के।
कोई बन गेल गरीब कोनो राजा जबार के॥
कोई न सुन रहल हए ऊ मुसमात के पुकार।
जेक्कर मरद हए चढ़ल सूली पर चुनाव के॥
अब न आएत ऊ देखे पलट क हमरा सब के।
जबतक न लगिचाएत फेनू मौसम चुनाव के॥
लूट-पाट क के पी क हम्मर सब के खून।
खूब पइसा ऊ जमा करत अगला, चुनाव के॥