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आक्षेप / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

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चील मड़रावै, गीध फड़फड़ाय छै
बाझ झपट्टा केॅ दाव लगाय छै
आँखी के मटकी मारतें-मारते
बिल्ली मुसवा केॅ लेकेॅ दबाय छै।

बिल्ली के दाबोॅ पर मूसा
कखनू मुक्का कखनू घूसा
फूट बाँलोॅ रंग मारी-मारी
जन्ने-तन्ने खूभे उड़ाय छै।

कौवा देलकै भोज केॅ नौता
गीध केॅ बीजोॅ आरोॅ अरहौता
भों-भों भूकी कुत्ता दौड़े
जब्बेॅ-तब्बेॅ रोबो जमाय छै।

कुत्ता भूकै छै कुत्ता पर
जे बैठलोॅ छै मुरदा पर
खेतें छै आरो भुकबै छै
दाँत दिखाय छै दुमो हिलाय छै॥

कोइये कहके सेल कबड्डी
मुँहोॅ में लैकेॅ भागै हड्डी
छीना-झपटी कै दोसरा सँ
हड्डी-गड्डी केॅ ढेर लगाय छै।

उढ़ी-उड़ी के देखै कौवा
केकरो सेर भर केकरौ पौवा
अछतै-पछतै मुँह लटकाय केॅ
गाछी बैठी केॅ लोर चुवाय छै।

कोइये हुकरै कोय डकरै छै
सामरथी केॅ के पकड़ै छै!
अतड़ी-भोथड़ी खाय-खाय केॅ
पेटोॅ में सभ्भे जिनिस सड़ाय छै

ढेर खेलकै होलै अनपच
केॅकड़ा-बिच्छोॅ सगरो फचफच
गल्ली-कूची नदियो-नाला
सभ्भे केॅ कत्ते महेकाय छै।

चिता केॅ ढेरोॅ पर धुवाँ में सेॅहरा
कत्तो जलाबोॅ जलतें चेहरा?
अपनै जलै छै आरेा जलाय छै-
चट-चट करी केॅ आग बुझाय छै॥

नै घबरावोॅ छेकै ई लूट
मरलो लाशोॅ पेॅ सब केॅ छूट
जलाय-पकाय केॅ गंगा भसाय केॅ
दम भरी कत्तेॅ भोजोॅ कराय छै।

मुँह लटकावोॅ की आँख छुपाबोॅ
आगू-पीछू जन्नेॅ घुमाबोॅ
गीध तेॅ आखिर गीधे छेकै
माँसोॅ के खाली भोग लगाय छै॥