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आखर-आखर छल छिड़िआयल / नवल श्री 'पंकज'
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आखर-आखर छल छिड़िआयल जोड़ि देलहुँ तऽ गजल बनल
अपन कलम केर लाधल चुप्पी तोड़ि देलहुँ तऽ गजल बनल
रंग रदीफक सजल काफिया बहरक लय मतलासँ मकता
भावक परती- उस्सर धरती कोड़ि देलहुँ तऽ गजल बनल
भाव पृष्ठपर शब्दक अरिपन पाड़ि रहल छी साँझ-परात
मोनक पट हम गजल रंगसँ ढोरि देलहुँ तऽ गजल बनल
गंगे सन अछि गजल गंहिरगर जते अकानब ततेक अथाह
मन-प्रवाह दिस लगन नाहकें मोड़ि देलहुँ तऽ गजल बनल
टीस उठल जँ मोन पड़ल किछु, कानि कऽ नोरे-नोर भेलहुँ
पांति-पांति नोरक पोखरिमे बोरि देलहुँ तऽ गजल बनल
छूटल-टूटल-रूसल सभ, नहि गजल बाटपर संग किओ
“नवल” गजल कहबा पाछा जग छोड़ि देलहुँ तऽ गजल बनल