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आखर-आखर मे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना / धीरेन्द्र

आखर-आखरमे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना
रहल ने हमरा मोनमे कनियो आन तरहकेर कामना।
धरतीकेर आँतरमे-पाँतरमे आर पहाड़क खोहमे,
जनस्थलीसँ वनस्थली धरि घुमलहुँ बस व्यामोहमे !
से व्यामोह जे हमरा भेटत कतहु मनक एक मीत रे,
जकर अभावमे हमरा लगइछ मानव-जीवन तीत रे !
नहि भेटल कतबो हम ताकी, बाँटी खाली प्रीति रे !
भऽ निराश हम बेर-बेर बस गाबी खाली गीत रे !
बूझह दुनियाँ जे बूझय, हम कऽ रहलहुँ अछि साधना !
आखर-आखरमे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना !