भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर अनन्त / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
मैंने नहीं छोड़े
तानाशाह के जन्मदिन पर पटाखे
मुझे सन्तोष है
मुझे सन्तोष है
मैंने सपने देखे
जो पूरे नहीं हुए
मैंने प्रेम किए इकतरफ़े
मुझे सन्तोष है
मुझे सन्तोष है
मैंने चुराए कुछ अमर बीज
और छींट दिए काग़ज़ पर
आखर अनन्त ।