भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 12 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सांस बीनणी
उमर धींसणो है
दुख दायजो
०००
तपता धोरा
अन्त बिहूणी जात्रा
बो दीखै पाणी
०००
माटी रळां म्हे
आभै पांगरो आप
खाद हां म्हे तो
०००
दारू, लुगाई-
थांरी दुनिया, म्हांरी-
आंसू’र धूंवो
०००
चढै तावड़ो
छत्तै सूं लेवां रोक
दिन-निरोध
०००