भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखर री औकात, पृष्ठ- 21 / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पंख काट’र
हेत सूं कैवै म्हांनै-
ओ आभो थांरो
०००

जीव सूं बेसी
सांस सूं सांस पाळै
नव महीना
०००

सोधै हो सुख
सगपण नै आया
बैरी आंसूड़ा
०००

उमड़ै अठै
पण बरसै बठै
हरामी लोर
०००

चीकणो मांस
हांओहता फिरै अठै
काती रा कुत्ता
०००