भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 25 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
देख भायला
सांधण दै, ना छेड़
भींतां री तेड़
०००
सुण रे लाडी !
अठै खातर कोनी
क्यूं सोधै हेत
०००
याद नीं आवै
दिनूगै-सिंझ्या गोख्यो
बगत पड़्यां
०००
अंवेरै पीड़
इतिहासू आखर
माण्डै कलम
०००
जाळ लेय’र
उड़गी कबूतरी
रोवै पारधी
०००