भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 30 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
रीत रायता
सांस भलांई खूटै
राखणो नाक
०००
हां, बै मरग्या
सोग सभा’र मून
-सनीमा चालां ?
०००
आधो है खाली
देखण-गत जुदो
आधो है भर्यो
०००
सांच सोधबा
गळी गळी भटकै
कूड़ रो घर
०००
पूंछ हिलायां
जे रोटी मिलै अठै
म्हनै नीं जरै
०००