भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 37 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
म्हे जो कीं थारां
करां, कुण बरजै
बोलै तो मारां
०००
होठां पै ताळा
गळो टूंपता हाथ
ऐ दिन काळा
०००
नमो है थांनै
उडण री छूट द्यो
पंख काट’र
०००
कंठ अमूजै
जुगां सूं छाती माथै
भूख रा धोरा
०००
अंधार धुप्प
स्सो कीं गमग्यो तो ई
चौफेर चुप्प
०००