भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखर री औकात, पृष्ठ- 42 / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उजास गमै
काळै रस्तै ले जावै
ऐ पगोथिया
०००

ठण्डो थूक्यो साS !
तातो थूकै बठै जा
मादर...... ?
०००

घरां में लोग
सांस रोक’र सुणै
बाजता बूंट
०००

दीवो खुद ई
उजास गिटै अठै
गुजारो कठै
०००

एक मरद
दिल्ली सूं गळी तांईं
बाकी नाजर
०००