भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 43 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
हरख सूंपी
थांरै हाथां ताकत
अबै रोवां म्हे
०००
रोसणी सोधो
आगै बधो- भींत है
भाट्ठा उठावो
०००
जठै जावता
फूल हा काल, आज-
गाळ्यां’र जूता
०००
हाथी रै होदै
घूमता गळी-गळू
आज उपाळा
०००
जूतां रो दाब
कांईं करता और
सिलाम सा’ब !
०००