भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखर री औकात, पृष्ठ- 55 / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माथै आ पड़ी
हुकम व्है तो बापू
ताकां लाठड़ी
०००

लटकावता
खुद लटक्योड़ा है
लाई ’हेंगर’
०००

दाब्यां नीं दबै
धरती फाड़ ऊगै
बागी व्है बीज
०००

पैली त्रेसठ
पतो नीं कांई व्हियो
छत्तीस व्हैगा
०००

अबोला हुया
एक दूजै नै पूछै-
थां कांईं कैयो ?
०००