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आखर री औकात, पृष्ठ- 63 / सांवर दइया
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आ धोरां माथै
तूं लिखै म्हारो नांव
आंधी बैरण
०००
आं आंख्यां सामै
डूंगरिया उठाव
सांसां नै ताव
०००
डील री आंच
ऐ अचपळी सांसां
नित पिघळै
०००
रात अंधारी
पग पड़्या थारा तो
जगग्या दीवा
०००
घड़ीक इन्नै
देखूं घड़ीक बिन्नै
खड़कै पत्ता
०००