आख़िरी ख़त / ममता व्यास
जब मैं खुश होती
प्रेम से भर जाती
तुम्हें गुलाबी खत लिखती
नाराज और दुखी होती
तुम्हें 'आखिरी खत' लिखती
मैंने अनगिनत बार लिखें हैं तुम्हें
आखिरी खत
मेरे $खतों को महज प्रेम का विवरण जान
छिपा दिए तुमने
कभी किताबों में
कभी दराजों में तो कभी का$गजों के बीच
दरअसल विवरण नहीं वो स्मरण थे
वरण थे...मरण थे
कभी आंखों में नहीं बसाई तुमने
$खतों की खुशबू
सोचा बेजुबान हैं
भला खत भी कभी कहते हैं मुझे पढ़ो...!
वो बे-पढ़ी चिट्ठियां बहुत कुलबुलाती है
लिफाफों से बाहर आने को
स्याह रातों में उनकी तड़प से
कांप जाती हैं तुम्हारे टेबल की दराज
बंद लिफाफों की चीखों से
हिलती हैं करीने से सजाई गई किताबें
जानती हूं...तुमने नहीं पढ़ा उन खतों को
क्योंकि तुम्हें उनकी खुशबू में जीना है
क्योंकि तुम्हें मरना पसंद नहीं...
(सुनो ....अब जबकि आखरी सांस भी टूटने को और ये आखरी खत भी छूटने को है।
तुम मेरे पहले वाले गुलाबी खत का जवाब दे दो .....मेरे खतों ने तुम्हे साँस साँस जीवन दिया है...तुम इन्हें पढ़कर मुझे मोक्ष दे दो)