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आख़िरी गीत / निमिषा सिंघल
Kavita Kosh से
ये आख़िरी गीत है मुहब्बत का
थोड़ा गुनगुना लूँ तो चलूँ!
अंधेरा छा रहा है दीया लड़खड़ा रहा
जरा झलक मिल जाए तुम्हारी तो चलूँ!
दृगों के कोर तक जब छलक आए हो
मोती बन आँख से ढलक आओ तो चलूँ!
धड़कनें तेज हैं कुछ घबराया-सा मन
थोड़ा थम के चैन पा लूं, तो चलूँ।
अब के बिछड़े फिर मिलें कि न मिल सकें
बस आँख भर देख लूँ तुमको, सुकूं से चलूँ!
आखिरी साँस ज्यों रूह की, इस देह में अटकी
तुम ज़िन्दगी सहेजने का वास्ता दे सको, तो चलूँ!
यही इक आखिरी गीत है मुहब्बत का तुम्हारे साथ ज़रा गुनगुना लूँ, तो चलूँ।