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आख़िरी जाम / आन्ना अख़्मातवा / अनिल जनविजय

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मैंने अपने उजड़े घर के नाम यह जाम उठाया,
कि मैंने इतना अशुभ अमंगलकारी जीवन पाया ।
साथ-साथ हम जीए अकेलेपन का ये भार ढोते,
तुम्हारे लिए पीती यह जाम, जो तुम पास में होते ।

झूठ कहा मुझे जिन होठों ने, किया था मुझसे छल,
आँखों का वह ठण्डापन ही, बना था तब मक़्तल ।
असल बात यह दुनिया रूखी, बर्बर और बेरहम,
उस ख़ुदा ने भी नहीं बचाया, बसा जो सबके ज़ेहन ।

1934

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए 
               Анна Ахматова
               Последний тост

Я пью за разорённый дом,
За злую жизнь мою,
За одиночество вдвоём,
И за тебя я пью, —

За ложь меня предавших губ,
За мертвый холод глаз,
За то, что мир жесток и груб,
За то, что Бог не спас.

1934 г.