आख़िर वही अल्लाह का एक नाम रहेगा / नज़ीर अकबराबादी
दुनियां में कोई ख़ास न कोई आम रहेगा।
न साहिबे मक़दूर न जाकाम रहेगा॥
ज़रदार<ref>मालदार</ref> न बेज़र<ref>गरीब</ref> न बद अंजाम रहेगा।
शादी न ग़मे गर्दिशे अय्याम रहेगा।
न ऐश न दुख दर्द न आराम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥1॥
यह चर्ख़<ref>आसमान</ref> दिखाता है पड़ा गुंबदे अज़रक<ref>नीला</ref>।
यह चांद यह सूरज, यह सितारे हैं मुअल्लक॥
लोहो क़लमो अर्शे बरीं, सावितो मुतलक़।
सब ठाठ यह एक आन में हो जावेगा हू हक़॥
आग़ाज किसी शै का न अंजाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥2॥
ले आलमे अर्वाह से ता आलमे जिन्नात।
इन्सान, परी, हूरो मलक जिन्नो खबीसात॥
क्या अब्रो<ref>बादल</ref> हवा, कोहो बहर अर्ज़ों समावात।
एक फूंक में उड़ जायेंगे जूं नक़्शे तिलिस्मात॥
हुशियार न पुख़्ता, न कोई ख़ाम रहेगा।
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥3॥
गर इल्मो हुनर से है कोई ख़ल्क़ में मशहूर।
या कश्फ़ो<ref>गुप्त बातों का ज्ञान</ref> करामात में है साहिबे मक़दूर॥
या एक का है नामो निशां ख़ल्क में मशहूर।
एकदम में पलक मारते हो जायेंगे सब दूर॥
मस्तूर<ref>छिपा हुआ, गुप्त</ref> न मशहूर, न गुमनाम रहेगा।
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥4॥
मुख़्तारी के ख़तरे से जो करते हैं सदा काम।
या जब्र से मजबूरी के रखते हैं कई दाम॥
जब आके फ़ना डालेगी एक गर्दिशे अय्याम।
एक आन में उड़ जायेगा सब चीज़ का इल्ज़ाम॥
मुख़्तार न मजबूर, न खुद काम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥5॥
अब दिल में बड़े अपने जो कहलाते हैं अय्यार<ref>बहुत अधिक चालाक</ref>।
सौ मक्रों<ref>धोखा</ref> दग़ा करते हैं एक आन में तैयार॥
जब आके फ़ना डालेगी सर के ऊपर एक वार।
एक बार के लगते ही यह हो जावेंगे सब पार॥
ने मक्र, न हीला, न कोई दाम रहैगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥6॥
करते हैं जो अब दिल से रियाज़ातो<ref>तपस्या</ref> इबादत।
या उम्र को खोते हैं बेरिंदीयो<ref>मस्ती</ref> ख़राबात॥
जब आके फ़ना छोड़ेगी शमशीर<ref>तलवार</ref> का एक हात।
फिर साफ़ है दोनों की गुनाहगारियो ताआत॥
न रिंद<ref>शराबी, मस्त</ref> न आबिद<ref>तपस्वी</ref> न मै आशाम<ref>शराब पीने वाला</ref> रहेगा।
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥7॥
झगड़ा न करे मिल्लतो मज़हब का कोई यां।
जिस राह में जो आन पड़े खु़श रहे हर आं॥
जुन्नार<ref>यज्ञोपवीत</ref> गले या कि बग़ल बीच हो कु़रआं।
आशिक़ तो क़लंदर<ref>मस्त और आज़ाद मनुष्य</ref> हैं न हिन्दू न मुसल्मां॥
काफ़िर न कोई, साहिबे इस्लाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥8॥
जो शाह कहाते हैं कोई उनसे यह पूछो।
दाराओ सिकन्दर वह गए आह किधर को॥
मग़रूर न हो शौकतो हश्मत पे, वज़ीरो।
इस दौलतो इक़बाल पे मत फूलो अमीरो॥
ने मुल्क, न दौलत, न सर अंजाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥9॥
व्योपार जो करते हैं हर एक चीज़ का ज़रदार।
आगे भी दुकानें थीं कई और कई बाज़ार॥
जिस तौर का अब चाहिए कर लीजिये व्योपार।
फिर जिन्स, न दल्लाल, न मालिक न ख़रीदार॥
न नक़्द, न कुछ कर्ज, न कुछ दाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥10॥
अब जितनी खड़ी देखो हो आलम में इमारात।
या झोंपड़े दो कौड़ी के या लाख के महलात॥
क्या पस्त मकां, क्या यह हवादार मकानात।
एक ईंट भी ढूंढ़े कहीं आने की नहीं हात॥
दालान न हुजरा, न दरो बाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥11॥
यह बागो चमन अब जो हर एक जा में रहे फूल।
यह शाख़ यह गुंचा, यह हरे पात यह फल फूल॥
आजावेगी जब वादे खि़जां उनके उपर भूल।
हर ख़ार की हर फूल की, उड़ जावेगी सब धूल॥
न ज़र्द, न सुर्ख, और न सियाहफ़ाम<ref>काले रंग का</ref> रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥12॥
मै ख़्वार<ref>शराब पीने वाले, शराबी</ref> भी कितने हुए याँ मै के मलाक़ी।
साक़ी भी कई हो गए महबूब वसाक़ी॥
ला जाम कोई भर के जो हो और भी बाकी।
फु़र्सत है गनीमत कोई दम को, अरे साक़ी॥
न मै न सुराही न तेरा जाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥13॥
यह आशि़की माशूक जो करते हैं बहम चाह।
आगे भी बहुत आशिको माशूक थे वल्लाह॥
वह शख़्स कहां जाते रहे, ऐ! मेरे अल्लाह!
यह बात से मालूम हुआ अब तो यही आह॥
न इश्क न आशिक न दिल आराम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥14॥
टुक गौर करो अब हैं कहां मजनूं व फ़रहाद।
लैला कहां, शीरीं कहां, वह नाज़ वह वेदाद॥
जो फूल खिले, वाह, वह सब हो गए बरबाद।
हम तुम भी ग़नीमत हैं सुन, ओ यार परीज़ाद॥
वां हुस्न, न यां इश्क का हंगामा रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥15॥
महबूब बना जिसने, तुम्हें हुस्न दिया है।
उसने ही हमें आशिके़ जां बाज़ किया है।
मिलना है तो मिल लो, यही जीने का मज़ा है।
सब नाज़ो नियाज, आह, यह एक दम की हवा है॥
फिर हिज्र न कुछ वस्ल<ref>मिलन</ref> का पैगाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥16॥
मिलने से हमारे जो तुम्हें आता है इल्ज़ाम।
आने दो, पै तुम हमसे मिले जाओ, सहर शाम॥
फिर हुश्न कहां, अपने रखो काम से तुम काम।
झक मारते हैं, वह जो तुम्हें करते हैं बदनाम॥
तूफान, न भूतान, न इल्ज़ाम रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥17॥
यह शेरो ग़जल अब जो बनाते हैं ज़बानी।
आगे भी बहुत छोड़ गए अपनी निशानी॥
दीवान बनाया, कोई किस्सा कि कहानी।
कुछ बाक़ी ‘नज़ीर’ अब नहीं, सब चीज है फ़ानी<ref>मिटने वाली</ref>॥
ख़म्सा<ref>उर्दू की एक नज़्म जिसके हर बन्द में पाँच मिस्रे होते हैं।</ref> न ग़जल, फ़र्द न ईहाम<ref>एक अर्थालंकार जिसमें ऐसा शब्द लाते हैं जिसके दो अर्थ होते हैं और पास वाला अर्थ छोड़कर दूरवाला अर्थ लगाते हैं।</ref> रहेगा॥
आखि़र वही अल्लाह का एक नाम रहेगा॥18॥