भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखा तीज / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आई आखा तीज
संभाळै करसो
हळ’र बीज,
रांधै घर घर
बाजरै रो खीच
बणावै अमलवाणियो
कता स्याणा हा
आपणा बडेरा
बणा दी इसी रीत
जकै स्यूं राखां
आगूंच चीत
हुवो’र भलाईं मत हुवो
कोई खेतीखड़
पण जिमावै बीं दिन
घणै हेतु स्यूं
सगळां स्यूं पैली करसै नै
पछै जीमै घर रा मिनख
पीवै अमलवाणियो जको
लू री अचूक ओषद
बै करता सगळां रै
हित रो चिंतण
पण अबै री पीढ़ी कवै
पकड़ राखी है अणसमझ
गधै री पूंछ !