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आखिरी सांस तक / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

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बुद्ध, अशोक और गाँधी के देश ने
एक बार फिर
सँभाल लिया है
मजबूर होकर
युद्ध का मोर्चा।
कश्मीर के सुरभ्य प्रदेश में
धधक उठी हैं
केसर की क्यारियाँ
आ गया है तूफान डल झील में
श्रीनगर में महकने वाले
करोड़ों फूल
सोचते हैं,
काश, हम काँटे होते!

उससे बड़ा अन्यायी, और
जनतंत्र का हत्यारा
कौन होगा,
जो भोले बालकों की किलकारियों को
चिंगारियाँ बनने के लिए मजबूर कर दे,
नारियों की सारी कोमलता दूर कर दे
वृद्धों को क्रूर कर दे,
जवानी को सिर्फ
जहाजों, तोपों, टैंकों, मशीनगनों और
शत्रु की लाशों के सपने दिखाई दें,
निरीह नागरिकों को आधी रात के वक्त
साइरन सुनाई दें,
कारखानों में महज
बम-बारूद और फौलाद ढलने लगे
सारी-की-सारी जिंदगी
मौत की ओर चलने लगे!
करते रहे हें
जिसे दूर से नमस्कार
आज उस युद्ध के चरणों में
भेंट कर दिये हैं
शत्रु के सैंकड़ों टैंक
दर्जनों विमान
हज़ारों सिपाही
अकारण नहीं है यह सारी तबाही
इसकी जिम्मेदार है
फौजी तानाशाही।
जिसे समझाना है कि
शाँति के अग्रदूत पर
मनुष्यता के सबसे बड़े संरक्षक पर
जनतंत्र के सबसे पुष्ट उदाहरण पर
आक्रमण करना
कितना महँगा पड़ता है,
हिंदुस्तान का हरेक सिपाही
शांति की शान के लिए
मनुष्य के मान के लिए
और सिर्फ ईमान के लिए
आखिरी साँस तक लड़ता है!