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आखिर आखिर अपने दिल को राह पर लाना पड़ा / शोभा कुक्कल
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आखिर आखिर अपने दिल को राह पर लाना पड़ा
ये है दुनिया एक धोखा, खुद को समझाना पड़ा
ऐ चमन तेरी बहारों पर निछावर दिल मगर
हाय वो गुंचे जिन्हें बे वक़्त मुरझाना पड़ा
उन शहीदों को वतन वाले नमन करते रहें
जिनको सरहद पर वतन के काम आ जाना पड़ा
याद है अब तक तुम्हारी रुख्सती का वो समां
रो रहा था दिल मगर होंटो को मुस्काना पड़ा
याद हैं फ़ुर्सत के वो पल जो गुज़ारे साथ साथ
गीत हम को उन पलों का ख़ुद ही दुहराना पड़ा
चुन के कलियाँ हार जो मैंने पिरोया था कभी
साथ उन कलियों के मुझको भी बिख़र जाना पड़ा
इक तुम्हारे दिल की दुनिया में समाने के लिए
जाने कितने मसअले थे जिनको सुलझाना पड़ा।