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आखिर क्यों? / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
आदम से हव्वा तक
सदियों का अंतराल लांघ
मेरा और तुम्हारा आज
महज एक सवाल
मेरा होना
उम्र के अलाव में
धीमे धीमे पकना
दर्द को
पाँव से दिल तक
दिल से दिमाग तक
चीरे जाते हुए सहना
दर्द के न होने पर
खुद को सम्हाल न पाना
टूटना ...तन्हाइयों में सिमट जाना
नींद को बाजू में सुला
पलकों को उघाड़े रखना
स्मृतियों की किताब खोल
इन सारे सवालों के जवाब ढूँढना
नचिकेता बन
यम के द्वार तक पहुँच जाना
जवाब न पा खंगाल डालना
वेद, पुराण, उपनिषद, शास्त्र
विराट को समझ पाने की भूल में
बूंद भर अस्तित्व को खोकर
तिरोहित हो जाना
उस बड़े शून्य में
जहाँ पहुँचकर कोई
कभी नहीं लौटा
आखिर क्यों?