सूरज ने लिखी जो ग़ज़ल
वह धरती हो गई
धरती ने जो नज़्म कहा
नदी बन गयी
नदी-मिट्टी ने मिलकर
लिख डाले गीत अनगिन
होते गये पौधे और जीव
इन सबने मिलकर लिखी
वह कविता आदमी हो गई
धरती को बहुत उम्मीद है
अपनी आखि़री कविता से
सूरज ने लिखी जो ग़ज़ल
वह धरती हो गई
धरती ने जो नज़्म कहा
नदी बन गयी
नदी-मिट्टी ने मिलकर
लिख डाले गीत अनगिन
होते गये पौधे और जीव
इन सबने मिलकर लिखी
वह कविता आदमी हो गई
धरती को बहुत उम्मीद है
अपनी आखि़री कविता से