भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखि़री कविता / अशोक शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरज ने लिखी जो ग़ज़ल
वह धरती हो गई

धरती ने जो नज़्म कहा
नदी बन गयी

नदी-मिट्टी ने मिलकर
लिख डाले गीत अनगिन
होते गये पौधे और जीव

इन सबने मिलकर लिखी
वह कविता आदमी हो गई

धरती को बहुत उम्मीद है
अपनी आखि़री कविता से