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आखि़री संवाद / प्रज्ञा रावत

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एक दिन हम जाएँगे
कुलदेवी पूजने अपने गाँव
गाँव जिसका नाम भर जानते हैं हम
पुरखों की ज़मीन पर खड़े होकर
मन ही मन याद करते हुए उन्हें
रोना रोएँगे अपना
और माफी माँगते हुए
उनसे माँग लाएँगे खुशी अपनी
बची-खुची ज़िन्दगी और
आने वाली पीढ़ियों की
हो सकता है हम कुछ
ज़्यादा ही भावुक हो जाएँ
और उठा लाएँ मिट्टी
उस जगह की जिस पर
बैठ अपने सुख-दुःख बाँटे
हमारी परदादियों ने
इसके बाद
हम में से फिर कभी कोई
नहीं जाएगा गाँव
ये हमारा अपने गाँव के साथ
आखि़री संवाद होगा।