भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखो डील पसेवै सूं तर लागै / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आखो डील पसेवै सूं तर लागै
म्हांरी ना पूछो म्हांनै डर लागै
मन बिलमाई रै मिस गोळी छूटै
घरां में लोग धूजण थर-थर लागै
अजै चेती कोनी आपणी धूणी
भळै देख कठैई कीं कसर लागै
कोई दूजो ढंग सोधणो पडसी
दाद-फ़रियाद अठै बेअसर लागै
मून री सगळी भींतां भांग नांखी
उछळै कूदै टाबर : औ घर लागै