आगत भोर के प्रति / विमल राजस्थानी
झिलमिल तारों के निकुंज में बीती अंतिम रात साल की
आने वाले भोर! न जाने कैसी होगी रात तुम्हारी
बीते दिन तो बड़े सरस थे
बीते दिन तो बड़े मधुर थे
घायल मन की छवियों के पग-
बजते दर्दों के नूपुर थे
आँसू की बारात लिये आया था दुख पीड़ा को बरने
क्वांरी टीस, न जाने अब कैसी होगी बारात तुम्हारी
झिलमिल तारों के निकुंज में...
ठेस लगी, बचपन मुस्काया
चोट लगी, यौवन गदराया
लगीं ठोकरें, करुणा बिखरी
सिरह-सिहर कर निखरी काया
छल आँसू बन-बन कर छलका, ज्यों छींटा हो गंगा जल का
मरु को भी नंदन कर आयी सींच-सींच नयनों की झारी
झिलमिल तारों के निकुंज में...
दिल तो इतना बड़ा मिला
पर दर्द मिला ऐसा-वैसा ही
देने वालों ने समझा मेरा-
दिल भी अपने जैसा ही
मैं तो अब भी बाँह पसारे, भटक रहा हूँ द्वारे-द्वारे
पता नहीं क्या ऐसी-वैसी ही होगी सौगात तुम्हारी
झिलमिल तारों के निकुंज में...
सचमुच पीर बहुत प्यारी है
आँसू अतिशय सुख देते हैं
कसक, वेदना, मधुर टीस के-
चप्पू ही नैया खेते हैं
यदि ये होते नहीं, नाव को कब की मझधारें पी जातीं
चरण चूम कर नहीं पुलिन तब भर पाता शिशु-सा किलकारी
झिलमिल तारों के निकुंज में...
जग की सारी पीड़ा का
उपहार लिये आओ तो जानूँ
दर्दों की प्यारी सौगात-
लिये आओ तो अपना मानूँ
जी करता है सारी पीर समेटूँ, मन-प्राणों में भर लूँ
युग-युग तक मैं हरी-भरी रक्खूं अपने मन की फुलवारी
झिलमिल तारों के निकुंज में...
चाह नहीं-हो सुरपुर जाना
मुक्ति-मोक्ष जैसा कुछ पाना
लगा रहे बस आना-जाना
ऊदे घावों का सहलाना
चोटें खा कर निखरूँ-सँवरूँ, प्रभु-पद-रज बन भू पर बिखरूँ
मरु-सा हँस-हँस कर झेलूँ मैं दर्दों की बरसात तुम्हारी
झिलमिल तारों के निकुंज में...
-धनतेरस
10-11.11.1974