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आगम विपत्तियों से यदि हम न यों ही डरते / रंजना वर्मा
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आगम विपत्तियों से यदि हम न यों ही' डरते।
तो सत्य मान लीजे दुनियाँ को' जीत रहते॥
अपने चरित्र को तुम लेते सँभाल यदि तो
दुश्मन के घर मे'पानी जाकर न ऐसे' भरते॥
मंजिल सदा उन्हीं का रस्ता निहारती है
कठिनाइयों में पड़ कर जो राह से न हटते॥
है कर्म की ही' महिमा कर्तव्य ही प्रमुख है
ये कर्म बीज बन कर ही वक्त पर हैं' फलते॥
खोलो नयन निहारो है ज़िन्दगी अनोखी
हिम्मत अगर करोगे तो देर क्या सँवरते॥
तट नर्मदा मिलें जो पत्थर कभी न कहना
वो मूर्ति विष्णु जी की हैं' लोग यही कहते॥
धाता का' तज कमंडल बहने लगी धरा पर
गंगा में' लगा डुबकी सब पाप ताप दहते॥