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आगे माइ, जानु करु आरे लौवा, जानु करु बखान गे माइ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में मुंडन करने वाले नाई को मुंडन के समय सोने के उस्तुरे और चाँदी की कटोरी के उपयोग करने तथा वस्त्राभूषण उपहार देने का उल्लेख बच्चे के माता-पिता की संपन्नता तथा पारिवारिक प्रतिष्ठा का द्योतक है।

आगे माइ, कवन बाबू के माड़ब चढ़ि लौबा<ref>नाई</ref> करै बखान गे माइ।
आगे माइ, जानु<ref>मत करो</ref> करु आरे लौवा, जानु करु बखान गे माइ॥1॥
आगे माइ, सोना केरा खूर गढ़ैहें<ref>गढ़वाना</ref>, रूपा केर बाटी<ref>कटोरा</ref>।
आगे माइ, ओहिं खूर मूड़िहैं रे लौवा, बच्चन पोता केरऽ टीक<ref>चोटी; शिखा</ref>॥2॥
आगे माइ, देबौ देबौ आरे लौचा, पिअरियो धोती।
आगे माइ, औरो देबौ आरे लौवा, डाला भरी सोनमा॥3॥

शब्दार्थ
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