भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग्रह / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी को
मत करो मजबूर !
इतना कि
बेइंसाफ़ियों को झेलते

वह जानवर बन जाय !

या
बेइंतिहा
दर्द की अनुभूतियों को भोगते

वह खण्डहर बन जाय !

आदमी को
मत करो मज़बूर
इतना कि उसको
ज़िन्दगी
लगने लगे

चुभता हुआ
रिसता हुआ
नासूर !

आदमी को
मत करो
यों
इस क़दर मजबूर !