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आग, पानी और प्यास / प्रेमनन्दन
Kavita Kosh से
जब भी लगती है उन्हें प्यास
वे लिखते हैं
खुरदुरे काग़ज़ के चिकने चेहरे पर
कुछ बून्द पानी
और धधकने लगती है आग !
इसी आग की आँच से
बुझा लेते हैं वे
अपनी हर तरह की प्यास!
आग और पानी को
काग़ज़ में बाँधकर
जेब में रखना
सीखे कोई उनसे !